जब से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान की यात्रा से लौटे हैं, उसके बाद दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्तों को नया आयाम मिलता हुआ दिखाई दे रहा है. मंगलवार को जापान की दूसरी सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी मित्सुई ओएसके लाइन्स ने भारत में टैंकर बनाने के लिए भारतीय कंपनियों सामने हाथ बढ़ाया है. मौजूदा समय में भारत जिस तरह से कच्चा तेल इंपोर्ट कर रहा है और रिफाइंड ऑयल प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट कर रहा है. उसके लिए काफी शिप की जरुरत है. हाल के वर्षों में भारत के एक्सपोर्ट में भी इजाफा देखने को मिला है. जिसकी वजह से देश को विदेशी शिप के भरोसे पर है. जिसकी वजह से कॉस्ट में काफी इजाफा होता है. इस खर्च में कटौती करने के लिए भारत शिप निर्माण को लेकर काफी सीरियस है.
जापानी कंपनी ने बढ़ाया हाथ
कंपनी के सीईओ ताकेशी हाशिमोतो ने कहा कि इस अगर भारत में कोई कंपनी उनके साथ पार्टनरशिप करती है तो इससे भारत में लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. वास्तव में भारत अपने समुद्री कानूनों को मॉर्डन कर रहा है. ताकि जहाज निर्माण, बंदरगाहों और शिपयार्ड सहित इस सेक्टर में विदेशी भागीदारी को अनुमति दी जा सके, ताकि 2047 तक विदेशी कंपनियों को माल ढुलाई में कम से कम एक तिहाई की कमी आ सके. हाशिमोतो ने मंगलवार को सिंगापुर में एपीपीईसी सम्मेलन में संवाददाताओं से कहा कि भारत सरकार नए जहाजों का निर्माण भारत में होते देखना चाहती है. अगर संभव हो, तो हम इस परियोजना में शामिल होना चाहते हैं.
भारत को भी है जरुरत
भारत का शिपिंग फ्लीट एनर्जी इंपोर्ट और रिफाइंड ऑयल प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट सहित व्यापार में हुई वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रख पाया है. हाशिमोतो ने कहा कि हमें निश्चित रूप से लोकर पार्टनर के साथ मिलकर काम करने और भारतीय शिपयार्डों के साथ मज़बूत सहयोग करने की जरूरत है. सरकार ने फ़रवरी में अपने बजट में कहा था कि भारत देश के जहाज निर्माण और मरम्मत उद्योग के लॉन्गटर्म फाइनेंसिंग के लिए 250 अरब रुपए (2.84 अरब डॉलर) का समुद्री विकास फंड स्थापित करेगा. भारत को एक विश्वस्तरीय मैन्युफैक्चरिंग राष्ट्र बनाने के लिए अरबों डॉलर के प्रयासों के तहत सरकार जहाज निर्माण को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है.